Dr. Neelam

Add To collaction

मिट्टी के चूल्हे

*मिट्टी के चूल्हे*

अधुनातन की अंधी
दौड़ में
भूल गये मिट्टी के चूल्हे
सौंधी-सौंधी महक उठाती
माटी के भांडे में पकते
वो सफेद-काले छोले।

सुलगती आँच में पकती
वो मोटे नाज की रोटियाँ
भूल गये उन हाथों को
जिनकी चपलता से
मिलतीं थी गरम-गरम
फूली-फूली-सी रोटियाँ।

भूल गये उस माँ को जिसकी
आँख लाख धुएँ से भरी
मगर रोटी कभी न जली
जठराग्नि सबकी बुझी या नहीं,सुलगती आँच में वो देखती
भिनसारे ही लीप-पोत कर तैयारियाँ भोजन की
कर देती।

चूल्हे बदले,भोजन बदला
बदल गये रोटी पकाने वाले हाथ
माँ के कोमल-कठोर हाथों के बदले
घर आती महरिया* जिसके हाथों का बेस्वादु
भोजन ही निगलना
शगल हो गया।

*महरिया-नौकरानी

         डा.नीलम

   4
2 Comments

Gunjan Kamal

03-Dec-2023 06:31 PM

👏👌

Reply

KALPANA SINHA

25-Nov-2023 09:49 PM

Awesome

Reply