मिट्टी के चूल्हे
*मिट्टी के चूल्हे*
अधुनातन की अंधी
दौड़ में
भूल गये मिट्टी के चूल्हे
सौंधी-सौंधी महक उठाती
माटी के भांडे में पकते
वो सफेद-काले छोले।
सुलगती आँच में पकती
वो मोटे नाज की रोटियाँ
भूल गये उन हाथों को
जिनकी चपलता से
मिलतीं थी गरम-गरम
फूली-फूली-सी रोटियाँ।
भूल गये उस माँ को जिसकी
आँख लाख धुएँ से भरी
मगर रोटी कभी न जली
जठराग्नि सबकी बुझी या नहीं,सुलगती आँच में वो देखती
भिनसारे ही लीप-पोत कर तैयारियाँ भोजन की
कर देती।
चूल्हे बदले,भोजन बदला
बदल गये रोटी पकाने वाले हाथ
माँ के कोमल-कठोर हाथों के बदले
घर आती महरिया* जिसके हाथों का बेस्वादु
भोजन ही निगलना
शगल हो गया।
*महरिया-नौकरानी
डा.नीलम
Gunjan Kamal
03-Dec-2023 06:31 PM
👏👌
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KALPANA SINHA
25-Nov-2023 09:49 PM
Awesome
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